Subah-Shaam Jaap Karne Wala Ek Shreshth Bhakti Mantra

भक्ति और ध्यान का जीवन में महत्व अत्यंत विशेष होता है। जो व्यक्ति नित्य सुबह और शाम भक्ति में समर्पित रहते हैं , उनका मन और विचार हमेशा शुद्ध और शांत रहते हैं। भक्ति और मंत्र - जाप एक ऐसे माध्यम हैं जो हमारे मन को शुद्ध करते हैं और हमें आत्मविश्वास प्रदान करते हैं। हिंदू धर्म में अनेक पवित्र मंत्र हैं जो भक्ति और शक्ति का प्रतीक हैं। इनमें से एक विशेष मंत्र है जो राम भक्तों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है : " रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:॥"   यह मंत्र न केवल भक्ति का प्रतीक है बल्कि जीवन के अनेक पहलुओं में शांति , समृद्धि और उन्नति प्रदान करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि सुबह - शाम मंत्र जाप का महत्व क्या है , इसका विधि - विवरण क्या है और इसका जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। मंत्र जाप का महत्व भगवान का नाम जपना एक ऐसी क्रिया है जो हमारे मन और जीवन को नई ऊर्जा से भर देती है। मंत्र जाप करने स...

Sant Kabir: Vyaktitv Ki Mahanta Aur Krtitv Ki Visheshataen

भारतीय संत परंपरा में संत कबीर का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे एक ऐसे संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने विचारों और कृतियों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों, अंधविश्वासों और धार्मिक आडंबरों पर करारा प्रहार किया। उनका जीवन एक आदर्श प्रेरणा स्रोत है, जो हमें सत्य, प्रेम, और समभाव की ओर अग्रसर करता है। "कबीर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व" केवल उनके विचारों की महानता को दर्शाता है, बल्कि उनकी रचनाओं के गहरे अर्थ को भी प्रकट करता है।

संत कबीर का जीवन परिचय

संत कबीर का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। उनके जन्म को लेकर विभिन्न मत प्रचलित हैं, लेकिन अधिकांश विद्वानों का मानना है कि वे एक जुलाहा परिवार में जन्मे थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें एक विधवा ब्राह्मणी ने जन्म दिया था और बाद में नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने उनका पालन-पोषण किया। उनका पालन-पोषण अत्यंत साधारण वातावरण में हुआ, लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण था।

कबीर बचपन से ही सत्य की खोज में रुचि रखते थे। वे धार्मिक आडंबरों और रूढ़ियों के घोर विरोधी थे। कहा जाता है कि उन्होंने गुरु रामानंद से दीक्षा ली, लेकिन उन्होंने अपने विचारों और जीवनशैली को किसी भी धर्म तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की कट्टरता को चुनौती दी और सच्चे ईश्वर की खोज को ही सर्वोपरि माना।

संत कबीर का व्यक्तित्व

कबीर के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता उनकी निर्भीकता थी। उन्होंने बिना किसी भय के सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक आडंबरों और बाहरी आडंबरपूर्ण पूजा-पद्धतियों का विरोध किया। उनके अनुसार, ईश्वर की प्राप्ति केवल प्रेम और भक्ति से संभव है, कि बाहरी कर्मकांडों से। वे सहज, सरल और सटीक भाषा में अपनी बात कहने में विश्वास रखते थे।

कबीर का व्यक्तित्व संतुलन का प्रतीक था। वे हिंदू थे, मुसलमान, बल्कि वे तो मानवता के पुजारी थे। उन्होंने अपने विचारों में स्पष्टता रखी और किसी भी प्रकार के भेदभाव को स्वीकार नहीं किया। उनका जीवन आत्मनिर्भरता और सेवा का उदाहरण था। वे जुलाहा थे और अपनी जीविका स्वयं कमाते थे। उन्होंने परिश्रम को ही सच्ची पूजा माना और दूसरों को भी इसी सिद्धांत का पालन करने की प्रेरणा दी।

संत कबीर का कृतित्व

संत कबीर ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ लिखीं, जो भक्ति, प्रेम, समाज सुधार और आध्यात्मिक ज्ञान से भरपूर हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में दोहे, साखी, रमैनी और पद शामिल हैं। उनकी रचनाएँ इतनी प्रभावशाली थीं कि वे आज भी समाज को मार्गदर्शन देती हैं।

1. कबीर के दोहे

कबीर के दोहे उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक हैं। उनके दोहों में गहरी जीवन-दर्शन की बातें समाहित होती हैं। कुछ प्रसिद्ध दोहे निम्नलिखित हैं:

"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।"

इस दोहे के माध्यम से कबीर यह समझाते हैं कि केवल ऊँचाई या बड़ा होना ही महत्व नहीं रखता, बल्कि दूसरों के लिए उपयोगी होना अधिक महत्वपूर्ण है।

2. साखी

साखी कबीर की वह रचनात्मक शैली है जिसमें उन्होंने अपने विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत किया। इनमें भक्ति, अध्यात्म और समाज सुधार से जुड़ी बातें होती हैं। उदाहरणस्वरूप:

"चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।

दो पाटन के बीच में, साबुत बचा कोय।।"

यह साखी जीवन के संघर्ष और कठिनाइयों का संकेत देती है, जहाँ व्यक्ति यदि सावधान नहीं रहता, तो वह कुचला जा सकता है।

3. रमैनी और पद

कबीर की अन्य रचनाएँ भी बेहद महत्वपूर्ण हैं, जिनमें उन्होंने भक्ति, समाज सुधार और ईश्वर के प्रति प्रेम को व्यक्त किया है। उनके पदों में भक्ति रस की गहराई देखने को मिलती है।

कबीर की शिक्षाएँ

कबीर की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को नई दिशा देने का कार्य करती हैं। उनकी शिक्षाओं के कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:

1. अंधविश्वास और पाखंड का विरोध:

कबीर ने मूर्तिपूजा, जातिवाद और धार्मिक आडंबरों का विरोध किया। वे मानते थे कि ईश्वर को पाने के लिए किसी बाहरी माध्यम की आवश्यकता नहीं, बल्कि सच्चे प्रेम और भक्ति की जरूरत होती है।

"माला फेरत जुग गया, फिरा मन का फेर।

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।"

2. सामाजिक समरसता का संदेश:

कबीर ने जाति-पाति के भेदभाव का विरोध किया और कहा कि सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त ऊँच-नीच की भावना को दूर करने का प्रयास किया।

3. साधना और आत्मा का महत्व:

वे आत्मज्ञान को ही सबसे बड़ा ज्ञान मानते थे और सत्संग को महत्वपूर्ण मानते थे। उनका कहना था कि सच्चा गुरु ही मनुष्य को सच्चे मार्ग पर ले जा सकता है।

4. प्रेम और भक्ति की महत्ता:

कबीर ने प्रेम को सबसे बड़ा साधन बताया। उनके अनुसार, प्रेम ही वह शक्ति है जो ईश्वर से जोड़ सकती है।

"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।"

निष्कर्ष

संत कबीर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान, प्रेम और भक्ति ही जीवन का सार है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को उजागर किया और लोगों को सच्ची भक्ति की राह दिखाई। उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें एकता, प्रेम और आध्यात्मिक ज्ञान की प्रेरणा देती हैं।

कबीर केवल एक संत थे, बल्कि एक महान कवि, समाज सुधारक और दार्शनिक भी थे। उनका कृतित्व हमें यह सिखाता है कि धर्म, जाति, भाषा या संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता को अपनाना ही सच्ची भक्ति और ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है। "कबीर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व" भारतीय समाज के लिए एक अनमोल धरोहर है, जिसे हमें आत्मसात करने की आवश्यकता है।

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